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बेड़ियों- सी यादें।

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 मैं तुम्हारे दिए वो सारे झुमके अब कहीं रख कर भूल जाना चाहती हूं। वो चूड़ियां भी,जिसे उस गुमटी जैसी छोटी सी दुकान पर देख कर तुम्हे मेरी याद आयी और बरबस ही फोन पर तुमने कहा कि तुम्हें चूड़ियां पसंद है ना....मैंने हसते हुवे कहा था "हां"...धीरे धीरे तुम्हे मेरी हर पसंद के बारे में पता चल गया था तभी तो तुम अधिकतर कहा करते थे कि "तुम्हे खुश करना बहुत आसान है" हां! तुम्हारे "साथ" मेरा खुश होना आसान ही तो था,उतना ही आसान जितना तुम्हारे लिए सब छोड़ कर जाना था। तुम्हारे खरीदने के बाद झुमके,चूड़ियां खुद खरीदना कभी नहीं भाया मुझे,जो मै खरीदती तो वो बेनूर से लगते जैसे वो बात ही ना हो उनमें। 50रुपए की वो चूड़ियां और 65रुपए वाले झुमके मेरे लिए किसी चांद तारे से कम ना थी। वो चूड़ियां अब मै पहनती नहीं पर संभाल के अब भी सब कुछ सपने की तरह एक डिब्बे में रखा है। पर अब वो डिब्बा मै फेंक देना चाहती हूं किसी नदी या दरिया में कि बहा कर ले जाए उसे दूर बहुत दूर...  एक तुम्हारे ना होने से वो सारी यादें अब तकलीफ़ देती हैं,तुम्हारा नहीं पता पर खुद से और ख़ुदा से मै हमेशा सवाल करती हू

जाने वाले....❤️

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लैपटॉप पर उसकी उंगलियां दौड़ रही थीं एक एक शब्द को वो मकान की ईंटों की तरह जोड़ रही थी...किरदारों में रंग भी भरना था उसे...और फिर खड़ी करनी थी एक नई दुनियां..जहाँ वो हैप्पी एंडिंग वाली ख़ुशियाँ ढूंढती थी..औरो के लिए वो पागल थी...पर फिर भी वो अपनी ही कैद में खुश थी...।। जिन्हें कह नही पाती उन बातों को आसानी से लिख दिया करती थी वो... सपनें जो पूरे नही हुवे उसे कहानियों में पूरा करती वो ऐसा नही था कि उसने कभी सहारा नही लिया या अपने गमो को बांटना ना चाहा हो पर जो भी आया वो अपने वक़्त के हिसाब से चला भी गया जाने वालों ने कभी उसकी मर्ज़ी नही पुछी ना ही पलट कर देखा और फिर रह जाती सिर्फ वो और हज़ार सवाल..अतीत में जुड़ता एक और अतीत...। उसे कभी समझ नही आया कि आने वाले आते वक्त इतनी मिन्नतें क्यों करते हैं, इतने वादे क्यों करते हैं जब उन्हें निभाना ही ना हो तो क्या उन्हें औरों की उम्मीदों के टूटने का ज़रा सा भी एहसास नही होता! इंसान जिस से प्यार के हज़ार दावे करता है उसे ही तोड़ कर क्यों रख देता है ये बात उसे कभी समझ नही आई क्योंकि उसके लिए प्यार का मतलब किसी एक का होजाना होता

इरफ़ान का आख़िरी ख़त...!!

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"कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से जूझ रहा हूं, मेरी शब्‍दावली के लिए यह शब्द बेहद नया था. इसके बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि यह एक दुर्लभ बीमारी है और इसपर ज्यादा रिसर्च नहीं हुआ है''. उन्होंने लिखा ''अभी तक मैं एक बेहद अलग खेल का हिस्‍सा था. मैं एक तेज भागती ट्रेन पर सवार था. मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, अकांक्षाएं थीं. मैं पूरी तरह इस सब में बिजी था. तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे रोका. वह टीसी था. बोला 'आपका स्‍टेशन आने वाला है. कृपया नीचे उतर जाएं. मैं परेशान हो गया बोला- 'नहीं-नहीं मेरा स्‍टेशन अभी नहीं आया है.' तो उसने कहा 'नहीं, आपका सफर यहीं तक था. कभी-कभी यह सफर ऐसे ही खत्‍म होता है." इरफान खान ने इस लेटर में आगे लिखा "इस सारे हंगामे, आश्‍चर्य, डर और घबराहट के बीच, एक बार अस्‍पताल में मैंने अपने बेटे से कहा 'मैं इस वक्‍त अपने आप से बस यही उम्‍मीद करता हूं कि इस हालत में मैं इस संकट से न गुजरूं. मुझे किसी भी तरह अपने पैरों पर खड़े होना है. मैं डर और घबराहट क

"जिंदगी_दो_पल_की"

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"मालूम है की खुद से मोहब्बत करनी चाहिए.. की खुद से ज्यादा कभी किसी को नहीं चाहना चाहिए.. पर क्या ऐसा हर कोई कर पाता है भला... जिंदगी कहा सोचने से चलती है... और दिल कब सुनता है, कहां मानता है... वो तो खुद से पहले औरों के बारे में ही सोचता है!! काश ऐसा हो कि जो खुद को उतनी मोहब्बत नहीं दे पाते,उन्हें कोई और गले लगा ले..। की कब किसी को अकेले हो आना पसंद आया है..!! काश ऐसा हो कि जब भी कोई रोए रातों को तो उसे बगल में बैठा वो शख्स मिले जो सब ठीक कर पाए या ना ,पर साथ रहने का वादा जरूर करे... शब्दों से सांत्वना भले ना दे पाए पर आंखों से जता पाए कि इस रात के बाद इक सुबह आनी है। कि काश थके ,लड़खड़ाते कदमों को गिरने से पहले कोई संभाल पाए...। #जिंदगी_खूबसूरत_है❤️ #Preeति❤️ Photo source - Google You can also read my poetry on my Facebook wall- https://www.facebook.com/unheardPreeti/ I'm on Instagram as @unheardpreeti

"अधूरा इश्क़ बनारस"

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"वो एक शहर जो बाकी शहरों से अलग था...जिसकी शाम और सुबह में शमशान की राख़ से लेकर,महादेव के भभूत की महक थी...जहाँ गंगा किनारें संन्यासी और युवा जोड़ें टहलते दिख जाते...सब कुछ वहाँ पुरा था...बनारस शहेर था वो...सबको अपना लेता था वो शहर... पर...ना जाने क्यों बनारस उसेअपना नही पाया कभी...उस पूरे शहर से अधूरी लौटी थी वो..।। उन दिनों अधूरेपन का जो सिलसिला शुरू हुवा वो कभी खत्म नही हुआ।। औरो की तरह उसे भी बनारस का हर रूप भाता था,उन्ही में से एक था गंगा आरती...और....इतनी आसान -सी ख़्वाहिश अधूरी रही....उस दिन आरती अधूरी छोड़ कर जाना पड़ा क्योंकि तब 8बजे से एक मिनट भी ज़्यादा बाहर रहने की इजाज़त नही मिल पाई थी....। कुछ इस तरह से अधूरा रहा ये हिस्सा बनारस का।। बनारस की बात हो और BHU का जिक्र ना हो तो हर कहानी अधूरी लगती है....। पर इधर BHU भी उसके हिस्से का अधूरा निकला.... और उस bhu के साथ जुड़े हर छोटे-बड़े सपने अधूरे निकले...वो कॉलेज का वक़्त जो उसका था,जिसे अभी तो उसने जीना शुरू किया था...mbbs की दौड़ से थक के,वो कॉलेज एक सुखद छावँ की तरह था...पर इतनी जल्दी छाँव लिखी कहाँ थी उसके हिस्से म

मायका-"दिल्ली और गर्मी की छुट्टियाँ"

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**"दिल्ली और गर्मी कि छुटियां"** सबकी तरह मुझे भी गर्मी की छुट्टीयां बहुत भाती है और भाए भी क्यों ना जब ज़िन्दगी हज़ार उलझनों के साथ दम घोटने की कोशिश  करती है तो पीहर की हवा सारे दर्द मिटाने की ताकत रखती है और ये एहसास दिलाती है कि "जिंदा हो तुम...अभी भी बहुत कुछ बाकी है तुम में". उस हवा में माँ का प्यार तो पापा का लाड होता है और साथ मे भाई-बहनों के साथ का तकरार...। फिर मेरे पीहर में तो सयुंक्त परिवार की वजह से रिश्तों की और भी खूबसूरत मोतिया थी जैसे चाचा-चाची,बुआ वगैरह। माँ कभी कोई काम नही करने देती थी मायके मेंं पर हजार काम मेरे नाम से रखती..तू आगयी ना तो बाजार चलना मेरे साथ ,नयी चूड़ियाँ आयी हैं आजकल...बच्चो के कपड़े भी ले दूंगी..अच्छे एक दिन तुझे मेरे साथ चाची के घर चलना होगा बहुत याद करती है तुझे... ना जाने ऐसे कितने काम माँ मेरे नाम का रखी रहती और ऐसे ही मिलते-मिलाते छुट्टियाँ खत्म होने लगती पर कुछ अलग होती थी मेरी गर्मी की छुटियां...किश्तों में बटी हुई। समझ ही नही आता कि इन छुटियों के आने पर खुश होजाऊँ या शून्य होजाऊँ...।। माँ हर छुट्टियों में पु

धागा-बंधन

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वो धागा जो  उलझा है मन में हर उलझन को जो जकड़ रखी है पैरों को बेड़ियों की तरह….. मिलता नही है  उसका एक  शिरा जिसे पकड़ मैं  सुलझाऊ जीवन को, और हर रिश्ते को  नए शिरे से। धागा जो बांधे रखेगा  हर रिश्ते को प्यार और स्नेह से, अपनेपन से सुलझ जाए वो जो किसी अपने के साथ से। वो धागा मोहब्बत का जो उलझा है………. वो धागा जो उलझा है मन में… जीवन में….. #preeति You can also read my poetry on my Facebook wall- https://www.facebook.com/unheardPreeti/ I'm on Instagram as @unheardpreeti