धागा-बंधन


वो धागा जो 
उलझा है मन में
हर उलझन को जो
जकड़ रखी है
पैरों को बेड़ियों की तरह…..
मिलता नही है
 उसका एक शिरा
जिसे पकड़ मैं
 सुलझाऊ जीवन को,
और हर रिश्ते को 
नए शिरे से।

धागा जो बांधे रखेगा
 हर रिश्ते को
प्यार और स्नेह से,
अपनेपन से
सुलझ जाए वो जो
किसी अपने के साथ से।

वो धागा मोहब्बत का
जो उलझा है……….
वो धागा जो उलझा है
मन में…
जीवन में…..
#preeति

You can also read my poetry on my Facebook wall- https://www.facebook.com/unheardPreeti/
I'm on Instagram as @unheardpreeti


Comments

Popular posts from this blog

जाने वाले....❤️

इरफ़ान का आख़िरी ख़त...!!

"जिंदगी_दो_पल_की"