तहज़ीब के नाम पर बंदिशे

  #यूँही
...............................................................
""तहज़ीब के नाम पर बंदिशे लगायी गयी
हम लड़कियां है हर बार बात बस यही बतायी गयी।
...................................................................
""पायल की छनकती,
शोख़ आवाजें बारिश की बूंदों के साथ अठखेलियां कर रही थी........
बिलकुल बेपरवाह-सी,मगन होकर,
स्वच्छंद बढ़े जा रही थी गलियों में
जैसे बारिश का पानी बहे जा रहा था बेपरवाह,बेतरतीब सा.......
नन्हे-नन्हे कदमो के निशाँ गीली मिट्टी पर मासूमियत
छोड़े जा रहे थे और हाथों में कागज की नाव
मानो उसके बचपन को पुरा कर रहे थे...।
तभी कड़कती रौबदार-सी आवाज़ बारिशों के खिलखिलाहट को चीरते हुवे गूँजी--"छवि अंदर आ,
ऐसे "लड़कियों" को बाहर घूमना 'शोभा' नही देता..."
और....
"बचपन को समेटते वो अंदर आगयी...............।

#Preeति

You can also read my poetry on my Facebook wall- https://www.facebook.com/unheardPreeti/
I'm on Instagram as @unheardpreeti


Comments

Popular posts from this blog

जाने वाले....❤️

इरफ़ान का आख़िरी ख़त...!!

"जिंदगी_दो_पल_की"