माँ के चावल और मेरी ख़्वाहिशें


माँ सालों से चावल चुना करती थी
और मैं ख़्वाहिशें

माँ उन चावलों को
ड्रम में रखा करती थी
बड़े जतन से उनमें
नीम की पत्तियां मिलाती
और भी कई तरीके अपनाती
की उसके चुने चावल
अगले साल तक महफ़ूज रहे

फिर माँ उनसे हर दोपहर
तो कभी रात के पहर में
थाली में चावल के प्यार परोसती।।

और मैं..
मैं भी उन ख़्वाहिशों को
जतन से बचपन के बक्शे में
तो कभी
आंखों में सजा कर रखतीं..
ये सोचकर कि
एक दिन मैं भी जिंदगी के थाल में
ख़्वाहिशों को हकीक़त
बनाकर सजाऊँगी
पर ख़्वाहिशों से ज्यादा जरूरतें जिद्दी थी
जरूरतें जीतती गयी
 और ख़्वाहिशें हारती गयी।।

#Preeति

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