"अधूरा इश्क़ बनारस"
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"वो एक शहर जो बाकी शहरों से अलग था...जिसकी शाम और सुबह में शमशान की राख़ से लेकर,महादेव के भभूत की महक थी...जहाँ गंगा किनारें संन्यासी और युवा जोड़ें टहलते दिख जाते...सब कुछ वहाँ पुरा था...बनारस शहेर था वो...सबको अपना लेता था वो शहर... पर...ना जाने क्यों बनारस उसेअपना नही पाया कभी...उस पूरे शहर से अधूरी लौटी थी वो..।। उन दिनों अधूरेपन का जो सिलसिला शुरू हुवा वो कभी खत्म नही हुआ।। औरो की तरह उसे भी बनारस का हर रूप भाता था,उन्ही में से एक था गंगा आरती...और....इतनी आसान -सी ख़्वाहिश अधूरी रही....उस दिन आरती अधूरी छोड़ कर जाना पड़ा क्योंकि तब 8बजे से एक मिनट भी ज़्यादा बाहर रहने की इजाज़त नही मिल पाई थी....। कुछ इस तरह से अधूरा रहा ये हिस्सा बनारस का।। बनारस की बात हो और BHU का जिक्र ना हो तो हर कहानी अधूरी लगती है....। पर इधर BHU भी उसके हिस्से का अधूरा निकला.... और उस bhu के साथ जुड़े हर छोटे-बड़े सपने अधूरे निकले...वो कॉलेज का वक़्त जो उसका था,जिसे अभी तो उसने जीना शुरू किया था...mbbs की दौड़ से थक के,वो कॉलेज एक सुखद छावँ की तरह था...पर इतनी जल्दी छाँव लिखी कहाँ थी उसके हिस्से म