बेड़ियों- सी यादें।
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मैं तुम्हारे दिए वो सारे झुमके अब कहीं रख कर भूल जाना चाहती हूं। वो चूड़ियां भी,जिसे उस गुमटी जैसी छोटी सी दुकान पर देख कर तुम्हे मेरी याद आयी और बरबस ही फोन पर तुमने कहा कि तुम्हें चूड़ियां पसंद है ना....मैंने हसते हुवे कहा था "हां"...धीरे धीरे तुम्हे मेरी हर पसंद के बारे में पता चल गया था तभी तो तुम अधिकतर कहा करते थे कि "तुम्हे खुश करना बहुत आसान है" हां! तुम्हारे "साथ" मेरा खुश होना आसान ही तो था,उतना ही आसान जितना तुम्हारे लिए सब छोड़ कर जाना था। तुम्हारे खरीदने के बाद झुमके,चूड़ियां खुद खरीदना कभी नहीं भाया मुझे,जो मै खरीदती तो वो बेनूर से लगते जैसे वो बात ही ना हो उनमें। 50रुपए की वो चूड़ियां और 65रुपए वाले झुमके मेरे लिए किसी चांद तारे से कम ना थी। वो चूड़ियां अब मै पहनती नहीं पर संभाल के अब भी सब कुछ सपने की तरह एक डिब्बे में रखा है। पर अब वो डिब्बा मै फेंक देना चाहती हूं किसी नदी या दरिया में कि बहा कर ले जाए उसे दूर बहुत दूर... एक तुम्हारे ना होने से वो सारी यादें अब तकलीफ़ देती हैं,तुम्हारा नहीं पता पर खुद से और ख़ुदा से मै हमेशा सवाल करती हू